जीवन जीने की कला साधना, धर्म, समाज. हिन्दी साहित्य और सामासिक संस्कृति स्वास्थ्य-सुख (१) कितनी भी *महँगी गाड़ी* में *घूम* लो, *अंतिम-सफर* तो *बाँस से बनी "अर्थी"* पर ही *करना पड़ेगा* .!! यही *जीवन* का *मूल-सत्य* है ...!!
(२) *पानी* अपना पूरा *जीवन* देकर *पेड़* को *बड़ा करता* है ... इसीलिए *शायद पानी लकड़ी* को *डूबने* नहीं देता ...!!
(३) *जीवन* में *पैसा* नहीँ *व्यवहार* कमाइये, क्योंकि *शमशान* में *४-करोड़* नहीँ *४-लोग छोड़ने आएंगे*...!!
(४) जीवन में जो बात *खाली पेट* और *खाली जेब सिखाती* है ... वो कोई *यूनिवर्सिटी* या *शिक्षक* भी नहीँ *सिखा-सकते* ...!!!
(५) *इन्सान* का *सबसे अच्छा साथी उसकी सेहत* है ... अगर *उसका साथ छूट जाए* तो हर *रिश्ते* के लिए *बोझ* बन जाता है ...!!
(६) *अकेले चलना सीखें* क्योंकि *सहारा* कितना भी *सच्चा* हो;एक दिन *औकात् दिखा* ही देता है?
(७) *मुस्कुराना* सीखिए.. *रोना* तो *जिन्दगी पैदा होते* ही *सिखा देती* है...!!
(८) *टेंसन, डिप्रेशन,* और *बेचैनी इन्सान* मे *तभी होती* है, जब वो *स्वंय* के लिए *कम* और *दूसरों* के लिए *ज्यादा सोचता* है ...
(९) *दवा जेब* में नहीँ, *शरीर* में जाये तो *उसका असर होता* है .. वैसे ही *अच्छे विचार मोबाइल* में नहीँ *हृदय* में उतरें तो *जीवन सफल होता* है;!
बुधवार
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मनुष्य का सबसे बड़ा धन उसका स्वस्थ शरीर हैं इससे बड़ा जगत में कोई धन नहीं है यद्यपि बहुत लोग धन के पीछे अपना यथार्थ और भविष्य सब कुछ भुल जाते हैं। उनको बस सब कुछ धन ही एक मात्र लक्ष्य होता है। अन्तहीन समय आने पर उन्हें जब तक ज्ञात होता है तब तक देर हो चुकी होती है। क्या मैंने थोड़ा सा समय अपने लिए जिया काश समय अपने लिए कुछ निकाल पाता तो आज इस अवस्था में मै नहीं होता जो परिवार का मात्र एक प्रमुख सहारा है वह आज दुसरे की आश लगाये बैठा है। कहने का तात्पर्य यह है कि वह समय हम पर निर्भर करता है थोडा सा ध्यान चिन्तन करने के लिए अपने लिए उपयुक्त समय निकाल कर इस शारीरिक मापदंड को ठीक किया जाय। और शरीर को नुकसान से बचाया जाए और स्वास्थ्य रखा जाय और जीवन जीने की कला को समझा जाय। vinaysinghsubansi.blogspot.com पर इसी पर कुछ हेल्थ टिप्स दिए गए हैं जो शायद आपके लिए वरदान साबित हो - धन्यवाद
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