डेंगू और चिकनगुनिया बुखार मच्छर के काटने से होता है। डेंगू बुखार जो मादा मच्छर के काटने से होता है। इस मच्छर का नाम दिया गया है मादा एडीज इजिप्टी यह मच्छर अक्सर दिन में ही काटते हैं और इसकी पहचान इसके शरीर पर चिते जैसी लाल रंग की धारिया होती है अक्सर यह बरसात के मौसम में ही इसका बिकास होता है और यह मुख्यतः जुलाई से अक्टूबर के बीच ज्यादा सक्रिय रूप से फैलता है। डेंगू बुखार के शुरुआती लक्षण तो जल्दी समझ में नहीं आता है लेकिन चिकनगुनिया में लक्षण चार पांच दिन के बाद मरीजों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं मरीज को तेज बुखार के साथ जोडो में दर्द रहता है सिर में दर्द और आखों में कष्ट के साथ हथेली और पैरों में रैशेज जकड़न हो जाती है जोडो में दर्द के साथ सूजन आ जाती है और ज्यादा परेशानी सुबह रहती है। डेंगू के लक्षणों के दिखाई देने पर तुरंत ही इलाज और इसका बचाव किया जाना चाहिए अन्यथा यह मौत का कारण बन सकता है इसका बचाव ही हम सबको डेंगू से लड़ने से सुरक्षित रख सकता है।। ।। ।।..
चिकनगुनिया के लक्षण - हथेलियों में और पैरों के साथ जकडन और रैशेज हो जाता है।, जहां जोडो के दर्द के साथ इसमें सूजन आ जाती है। और अक्सर दर्द प्रातःकाल में ज्यादा से ज्यादा महसूस होता है ज्वॉइन्ड में सभी जगह उभर कर आ जाते हैं दर्द के साथ सिर दर्द और आखों में कष्ट देते हैं और परेशानी होती है यह बुखार एक दिन से लेकर बाहर से पन्द्रह दिनों तक चलता है । डेंगू बुखार के लक्षण - यह अक्सर देर से पता चलता है इसमें कमर दर्द और मांसपेशियों में दर्द रहता है यह शरीर को तोड़ने वाला बुखार और बहुत ज्यादा खतरनाक है यह शरीर को कमजोर कर देता है कमजोरी ज्यादा हो जाती है सबसे ज्यादा इसमें प्लेटलेट्स लगातार गिरते रहते हैं और इसमें प्लेटलेट्स का गिरना ही खतरनाक साबित होता है जहां हमारे चेहरे को काले पन में बदलने लगते हैं लालिमा खत्म होने लगती है चेहरे और त्वचा पर रैशेज होते हैं शौच एकदम से बदल जाता है काला रंग का होने लगता है तथा उल्टियाँ होने लगती है और उल्टियां के साथ बल्ड आने लगता है यह बुखार दो दिन से लेकर सात से आठ दिनों तक रहता है। डेंगू बुखार ज्यादा खतरनाक - डेंगू बुखार और चिकनगुनिया में तुलना की जाए तो डेंगू बुखार ज्यादा खतरनाक है। डेंगू बुखार तीन प्रकार के होते हैं। साधारण डेंगू बुखार, हैमरेजिक बुखार, और शाँक सिंड्रोम बुखार जिसमें हैमरेजिक बुखार और शॉक सिंड्रोम बुखार बहुत ही खतरनाक होते हैं। यह मुख्यतः साधारण बुखार से शुरूआत होता है जिसका इलाज नहीं होने पर यह हैमरेजिक बुखार और शाँक सिंड्रोम बुखार में बदल जाते हैं और जानलेवा साबित होते हैं अतः शुरुआत में ही जाच कर इलाज किया जाय तो इसपर हम बड़े आराम से काबू पाने सकते हैं। डेंगू बुखार में हमारे शरीर में प्लेटलेट्स कम होने लगते हैं जिसका असर हमारे शरीर के अंगों पर इसका असर और प्रभाव पडने लगता है इस लिये इस बुखार में पहले प्लेटलेट्स पर काबू पाया जाता है और प्लेटलेट्स पर अगर काबू पा लिए तो फिर यह नार्मल हो जाता है इस बुखार में पैरासिटामोल दिया जाता है। लेकिन इसके जस्ट खतरनाक बुखार हैमरेजिक और शाँक सिंड्रोम बुखार में हमे प्लेटलेट्स चढाये जाते हैं और पूरी तरह से ठीक होने में करीब 12से15 दिन लग जाते हैं। इसमें आयुर्वेद और घरेलू उपाय के द्वारा काबू में रखने के लिए पपीते के पत्ते का रस साथ में तुलसी और गिलोय गुड़ का काढा लेने पर यह कंट्रोल में रहने के साथ धीरे धीरे इसपर काबू पाया जाता है। क्योंकि इससे प्लेटलेट्स और इम्यूनिटी दोनों बढते है जिससे इसको काबू में रखा जाता है। चिकनगुनिया बुखार - यह बुखार मुख्यतः एडीज मच्छर के काटने से होता है और ये मच्छर दिन में ही काटते हैं बुखार होने पर बुखार के साथ सर दर्द और शरीर पर लाल रंग के दाने उभर आते हैं जोडो में दर्द होने लगता है उठना बैठना मुश्किल हो जाता है आखों में दर्द होने लगता है हाथ पैर में सुजन हो जाता है ज्वॉइन्ड में दर्द रहता है इस बुखार का पता तीन चार दिन बाद यह सब लक्षण दिखाई देने लगते हैं इस बुखार में आराम बहुत जरूरी है।
बुखार की पुष्टि - बुखार होने पर अक्सर इसके लिये यह जानकारी रखना जरूरी है कि आपका बुखार एक दिन दो दिन या इससे ज्यादा दिन तक का बुखार है आप कितने दिन में टेस्ट करा रहे हैं। चिकनगुनिया में ब्लड टेस्ट होता है और उसकी पुष्टि हो जाती है। लेकिन डेंगू बुखार के लिए एलिसा टेस्ट होता है और उसके द्वारा ही इसकी पुष्टि होती है। वैसे तो और भी कई टेस्ट हैं पीसीआर टेस्ट यह टेस्ट बुखार होने पर छह से सात दिनों के बाद ही टेस्ट कराया जाता है और चिकनगुनिया हो या डेंगू बुखार हो टेस्ट के बाद पता चल जाता है इस टेस्ट को जीनोमिक टेस्ट कहते हैं। सीबीसी टेस्ट यह टेस्ट प्रारंभिक टेस्ट हैं क्योंकि चिकनगुनिया होने पर हमे इसके वायरल का पता तीन से चार दिनों के बाद ही पता चलता है जिसमें हमें इसके आंशका का पता चलता है इसमें दो दिनों के बाद टेस्ट होता है और टेस्ट के द्वारा हमे व्हाइट ब्लड सेल्स की संख्या का पता चल जाता है। एंटीबॉडीज टेस्ट चिकनगुनिया बुखार में मरीज में वायरस से लड़ने के लिए शरीर में एंटीबॉडीज बनता है इन्हें आइजीएम और आइजीजी कहते हैं आइजीजी चार से पांच दिन बाद बनने शुरू हो जाते हैं और आइजीएम में सात से आठ दिन बाद बनने शुरू हो जाते हैं टेस्ट के आधार पर डाक्टरों को पता चल जाता है आपका बुखार कितने दिनों से है इस टेस्ट को दो तरह से किया जाता है इम्यूनोलांजी और एलिसा जिससे डेंगू बुखार का पता चलता है वायरस आइसोलेशन टेस्ट इस टेस्ट में शुरू के पाच दिनों में किया जाता है और इसके द्वारा डेंगू और चिकनगुनिया का पता चलता है।
साफ-सफाई - चिकनगुनिया में आराम के साथ साफ़ सफाई बहुत जरूरी है और रोगी को ज्यादा से ज्यादा लिक्विड आइटम ही देना चाहिए क्योंकि अक्सर इस बुखार में डिहाइड्रेशन हो जाता है। और इसके साथ यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि मरीज को अगर अन्य रोग हो जैसे कि डायबिटीज शुगर हाइ बीपी अस्थमा हैं तो डॉक्टर के देख रेख में ही इलाज चलना चाहिए क्योंकि सभी रोगों का एक साथ दवा चलने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। दर्द से छुटकारा पाने के लिए ज्वॉइट के दर्द के लिए आइसपैक लगा सकते हैं।
होम्योपैथिक और आयुर्वेद में इलाज - होम्योपैथिक में चिकनगुनिया बुखार का इलाज है इसमें रसटक्स, बेलाडोना, और जेलसेनियम के द्वारा इलाज किया जाता है रसटक्स-इसमे रोगी को बुखार के साथ बेचैनी बहुत ज्यादा होती है गला और जीभ सुख जाते हैं। ठंड के साथ बुखार आए हाथ पैर में दर्द के साथ अगर ऐठन हो तो इसका प्रयोग किया जाता है और इसको लेकर आराम मिलता है इस औषधि को 30 शक्ति में चार बूंद सुबह शाम और दोपहर को लेना चाहिए।
बेलाडोना - इसका प्रयोग अगर रोगी को तेज बुखार हो प्यास नहीं लगे अगर चेहरा लाल हो तमतमाया हो आखों में जलन और लाल हो दर्द के साथ और रोशनी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं सर दर्द के साथ शरीर पर लाल रंग के दाने हो तो इसका प्रयोग बडा प्रभावशालि है इसको इस औषधि को छह शक्ति में हर दो घंटे बाद चार बूंद लेना चाहिए बहुत आराम पहुंचाता है।
जेलसेनियम - अगर रोगी को लगता है कि बुखार में ताप और ठंड दोनों एक के बाद एक बार आता है शरीर में शक्ति नहीं थकावट महसूस हो और प्यास का अभाव हो सारे शरीर में दर्द पीठों में दर्द मांसपेशियों में दर्द हो तो इसका प्रयोग बहुत लाभदायक है इस औषधि को तीन एक्स शक्ति में पांच पांच बूंद पानी के साथ तीन तीन घंटों के दौरान देना चाहिए।
नोट - होम्योपैथिक दवा रोगी के लक्षणों के आधार पर ही दी जाती है विषेश अपने डॉक्टर के देख रेख में ही दवाऔ का प्रयोग करे।
आयुर्वेद - डेंगू बुखार में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के विषेश डॉक्टर के द्वारा ही प्रयोग में लाए। कुछ ऐसी दवाएँ है जो आप डॉक्टर से सलाह लेकर ले सकते हैं जैसे कि सुदर्शन चूर्ण, त्रिभुवन कीर्ति रस, अमरूथारिस्ता, गिलोय, घनवटी, तुलसी, लौंग का काढा, मेथी के पत्ते या उसके बीज के का काढा जो कम से कम तीन घंटों तक पानी में भिगो कर बनाए और उसका प्रयोग करें, यह दवाएँ डेंगू के लक्षण कंट्रोल होने तक लेना चाहिए। और आवश्यक भी है और आप कुछ घरेलू उपाय के द्वारा भी कंट्रोल कर सकते हैं जो शरीर के तापमान दर्द ब्लड प्लेटलेट्स में मददगार के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता इम्यूनिटी बढाने के लिए मददगार साबित होती है।
चिकनगुनिया के लक्षण - हथेलियों में और पैरों के साथ जकडन और रैशेज हो जाता है।, जहां जोडो के दर्द के साथ इसमें सूजन आ जाती है। और अक्सर दर्द प्रातःकाल में ज्यादा से ज्यादा महसूस होता है ज्वॉइन्ड में सभी जगह उभर कर आ जाते हैं दर्द के साथ सिर दर्द और आखों में कष्ट देते हैं और परेशानी होती है यह बुखार एक दिन से लेकर बाहर से पन्द्रह दिनों तक चलता है । डेंगू बुखार के लक्षण - यह अक्सर देर से पता चलता है इसमें कमर दर्द और मांसपेशियों में दर्द रहता है यह शरीर को तोड़ने वाला बुखार और बहुत ज्यादा खतरनाक है यह शरीर को कमजोर कर देता है कमजोरी ज्यादा हो जाती है सबसे ज्यादा इसमें प्लेटलेट्स लगातार गिरते रहते हैं और इसमें प्लेटलेट्स का गिरना ही खतरनाक साबित होता है जहां हमारे चेहरे को काले पन में बदलने लगते हैं लालिमा खत्म होने लगती है चेहरे और त्वचा पर रैशेज होते हैं शौच एकदम से बदल जाता है काला रंग का होने लगता है तथा उल्टियाँ होने लगती है और उल्टियां के साथ बल्ड आने लगता है यह बुखार दो दिन से लेकर सात से आठ दिनों तक रहता है। डेंगू बुखार ज्यादा खतरनाक - डेंगू बुखार और चिकनगुनिया में तुलना की जाए तो डेंगू बुखार ज्यादा खतरनाक है। डेंगू बुखार तीन प्रकार के होते हैं। साधारण डेंगू बुखार, हैमरेजिक बुखार, और शाँक सिंड्रोम बुखार जिसमें हैमरेजिक बुखार और शॉक सिंड्रोम बुखार बहुत ही खतरनाक होते हैं। यह मुख्यतः साधारण बुखार से शुरूआत होता है जिसका इलाज नहीं होने पर यह हैमरेजिक बुखार और शाँक सिंड्रोम बुखार में बदल जाते हैं और जानलेवा साबित होते हैं अतः शुरुआत में ही जाच कर इलाज किया जाय तो इसपर हम बड़े आराम से काबू पाने सकते हैं। डेंगू बुखार में हमारे शरीर में प्लेटलेट्स कम होने लगते हैं जिसका असर हमारे शरीर के अंगों पर इसका असर और प्रभाव पडने लगता है इस लिये इस बुखार में पहले प्लेटलेट्स पर काबू पाया जाता है और प्लेटलेट्स पर अगर काबू पा लिए तो फिर यह नार्मल हो जाता है इस बुखार में पैरासिटामोल दिया जाता है। लेकिन इसके जस्ट खतरनाक बुखार हैमरेजिक और शाँक सिंड्रोम बुखार में हमे प्लेटलेट्स चढाये जाते हैं और पूरी तरह से ठीक होने में करीब 12से15 दिन लग जाते हैं। इसमें आयुर्वेद और घरेलू उपाय के द्वारा काबू में रखने के लिए पपीते के पत्ते का रस साथ में तुलसी और गिलोय गुड़ का काढा लेने पर यह कंट्रोल में रहने के साथ धीरे धीरे इसपर काबू पाया जाता है। क्योंकि इससे प्लेटलेट्स और इम्यूनिटी दोनों बढते है जिससे इसको काबू में रखा जाता है। चिकनगुनिया बुखार - यह बुखार मुख्यतः एडीज मच्छर के काटने से होता है और ये मच्छर दिन में ही काटते हैं बुखार होने पर बुखार के साथ सर दर्द और शरीर पर लाल रंग के दाने उभर आते हैं जोडो में दर्द होने लगता है उठना बैठना मुश्किल हो जाता है आखों में दर्द होने लगता है हाथ पैर में सुजन हो जाता है ज्वॉइन्ड में दर्द रहता है इस बुखार का पता तीन चार दिन बाद यह सब लक्षण दिखाई देने लगते हैं इस बुखार में आराम बहुत जरूरी है।
बुखार की पुष्टि - बुखार होने पर अक्सर इसके लिये यह जानकारी रखना जरूरी है कि आपका बुखार एक दिन दो दिन या इससे ज्यादा दिन तक का बुखार है आप कितने दिन में टेस्ट करा रहे हैं। चिकनगुनिया में ब्लड टेस्ट होता है और उसकी पुष्टि हो जाती है। लेकिन डेंगू बुखार के लिए एलिसा टेस्ट होता है और उसके द्वारा ही इसकी पुष्टि होती है। वैसे तो और भी कई टेस्ट हैं पीसीआर टेस्ट यह टेस्ट बुखार होने पर छह से सात दिनों के बाद ही टेस्ट कराया जाता है और चिकनगुनिया हो या डेंगू बुखार हो टेस्ट के बाद पता चल जाता है इस टेस्ट को जीनोमिक टेस्ट कहते हैं। सीबीसी टेस्ट यह टेस्ट प्रारंभिक टेस्ट हैं क्योंकि चिकनगुनिया होने पर हमे इसके वायरल का पता तीन से चार दिनों के बाद ही पता चलता है जिसमें हमें इसके आंशका का पता चलता है इसमें दो दिनों के बाद टेस्ट होता है और टेस्ट के द्वारा हमे व्हाइट ब्लड सेल्स की संख्या का पता चल जाता है। एंटीबॉडीज टेस्ट चिकनगुनिया बुखार में मरीज में वायरस से लड़ने के लिए शरीर में एंटीबॉडीज बनता है इन्हें आइजीएम और आइजीजी कहते हैं आइजीजी चार से पांच दिन बाद बनने शुरू हो जाते हैं और आइजीएम में सात से आठ दिन बाद बनने शुरू हो जाते हैं टेस्ट के आधार पर डाक्टरों को पता चल जाता है आपका बुखार कितने दिनों से है इस टेस्ट को दो तरह से किया जाता है इम्यूनोलांजी और एलिसा जिससे डेंगू बुखार का पता चलता है वायरस आइसोलेशन टेस्ट इस टेस्ट में शुरू के पाच दिनों में किया जाता है और इसके द्वारा डेंगू और चिकनगुनिया का पता चलता है।
साफ-सफाई - चिकनगुनिया में आराम के साथ साफ़ सफाई बहुत जरूरी है और रोगी को ज्यादा से ज्यादा लिक्विड आइटम ही देना चाहिए क्योंकि अक्सर इस बुखार में डिहाइड्रेशन हो जाता है। और इसके साथ यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि मरीज को अगर अन्य रोग हो जैसे कि डायबिटीज शुगर हाइ बीपी अस्थमा हैं तो डॉक्टर के देख रेख में ही इलाज चलना चाहिए क्योंकि सभी रोगों का एक साथ दवा चलने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। दर्द से छुटकारा पाने के लिए ज्वॉइट के दर्द के लिए आइसपैक लगा सकते हैं।
होम्योपैथिक और आयुर्वेद में इलाज - होम्योपैथिक में चिकनगुनिया बुखार का इलाज है इसमें रसटक्स, बेलाडोना, और जेलसेनियम के द्वारा इलाज किया जाता है रसटक्स-इसमे रोगी को बुखार के साथ बेचैनी बहुत ज्यादा होती है गला और जीभ सुख जाते हैं। ठंड के साथ बुखार आए हाथ पैर में दर्द के साथ अगर ऐठन हो तो इसका प्रयोग किया जाता है और इसको लेकर आराम मिलता है इस औषधि को 30 शक्ति में चार बूंद सुबह शाम और दोपहर को लेना चाहिए।
बेलाडोना - इसका प्रयोग अगर रोगी को तेज बुखार हो प्यास नहीं लगे अगर चेहरा लाल हो तमतमाया हो आखों में जलन और लाल हो दर्द के साथ और रोशनी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं सर दर्द के साथ शरीर पर लाल रंग के दाने हो तो इसका प्रयोग बडा प्रभावशालि है इसको इस औषधि को छह शक्ति में हर दो घंटे बाद चार बूंद लेना चाहिए बहुत आराम पहुंचाता है।
जेलसेनियम - अगर रोगी को लगता है कि बुखार में ताप और ठंड दोनों एक के बाद एक बार आता है शरीर में शक्ति नहीं थकावट महसूस हो और प्यास का अभाव हो सारे शरीर में दर्द पीठों में दर्द मांसपेशियों में दर्द हो तो इसका प्रयोग बहुत लाभदायक है इस औषधि को तीन एक्स शक्ति में पांच पांच बूंद पानी के साथ तीन तीन घंटों के दौरान देना चाहिए।
नोट - होम्योपैथिक दवा रोगी के लक्षणों के आधार पर ही दी जाती है विषेश अपने डॉक्टर के देख रेख में ही दवाऔ का प्रयोग करे।
आयुर्वेद - डेंगू बुखार में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के विषेश डॉक्टर के द्वारा ही प्रयोग में लाए। कुछ ऐसी दवाएँ है जो आप डॉक्टर से सलाह लेकर ले सकते हैं जैसे कि सुदर्शन चूर्ण, त्रिभुवन कीर्ति रस, अमरूथारिस्ता, गिलोय, घनवटी, तुलसी, लौंग का काढा, मेथी के पत्ते या उसके बीज के का काढा जो कम से कम तीन घंटों तक पानी में भिगो कर बनाए और उसका प्रयोग करें, यह दवाएँ डेंगू के लक्षण कंट्रोल होने तक लेना चाहिए। और आवश्यक भी है और आप कुछ घरेलू उपाय के द्वारा भी कंट्रोल कर सकते हैं जो शरीर के तापमान दर्द ब्लड प्लेटलेट्स में मददगार के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता इम्यूनिटी बढाने के लिए मददगार साबित होती है।
घरेलू उपाय - लौंग और इलायची का काढा बना कर पियें। तुलसी के पत्तों और काली मिर्च सौठ इलायची और थोड़ा गुड़ को मिलाकर उबालकर काढा बनाकर पियें जो बहुत आराम मिलता है। मेथी के पत्ते या बीज का पानी में भिगो कर काढा बनाए कमसे कम एक घंटे तक भिगोए फिर प्रयोग में लाए। अमृता या गिलोय गुड़ के साथ काढा बनाए और इसका प्रयोग करें। पपीते के पत्ते का रस बनाकर पियें जो काफी फायदेमंद है। किशमिश को भिगोकर पीसकर जो तैयार जूस हो उसका तीन चार बार प्रयोग करें। अदरक और आवला का रस प्रयोग में लाए। ठंडे दूध में क्वाटर चम्मच हल्दी मिलाकर पीने से लाभ होता है। दाल चीनी का पावडर गर्म पानी में मिलाकर पीने से लाभ होता है। लहसुन का भी सुबह खाली पेट लेने से आराम मिलता है लहसुन एक फाक वाला इस्तेमाल में लाए।। इससे बचने के उपाय - घर को साफ सुथरा रखे घर में नीम के सुखे पत्ते और कपूर जलाये जो धूआ हो उसको पूरे घर में फैलाये। घर में तुलसी का पौधा लगाये शरीर को हमेशा ढक कर रखे मच्छर दानी का प्रयोग करे घर में कहीं भी पानी इकठ्ठा नहीं होने दे कूलर एसी फ्रिज के ट्रे में पानी इकट्ठा न होने दें जमे हुए पानी में मिट्टी का तेल डालें खुली हुई नालियों में 50 से 100 एमएम पेट्रोल डाले लहसुन को पानी में उबालकर इस पानी छिड़काव दरवाजे और खिड़कियों पर करे। नीम के तेल शरीर में लगाये।।
मच्छर की प्रजातियां - मच्छरों की प्रजातियां करीब पूरे विश्व में 2700 प्रजातियां हैं। मच्छरों की कुछ प्रजातियां 100 मिल तक प्रवास कर सकती है। मच्छरों का अस्तित्व करीब चालीस करोड़ साल पहले से ही विद्यमान है। मच्छरों की गति करीब डेढ़ मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भर सकते हैं। एक मच्छर का वजन करीब 2.5 मिलीग्राम होता है मादा मच्छरों को अंडों को निषेचित करने के लिए खून की जरूरत होती है नर मच्छरों के ऊपर अंडों की जिम्मेदारी नहीं होती है इसलिए वह काटते नहीं है। जब वह खून चूसते है उस दौरान वह लार का स्राव करते हैं जो खून को जमने नहीं देता है इसी वजह से एलर्जिक रिएक्शन होता है और काटने के स्थान पर खुजली होती है मच्छर 80 डिग्री फॉरेनहाइट पर बेहतर तरीके से काम करते हैं 60 डिग्री पर वह सुस्त पड़ जाते हैं और 50 डिग्री फॉरेनहाइट से कम तापमान पर वह कार्य नहीं कर सकते हैं 100+ मच्छर कार्बन डाई आक्साइड को 100 फिट दूर से भी महसूस कर सकते हैं। पूरी दुनिया में 2700 प्रजातियां पाई जाती है जबकि 176 प्रजातियां अकेले अमेरिका में है भारत में एनोफिलीज प्रजातियां ही मच्छरों को रोग के प्रकार के लिए जिम्मेदार माना जाता है। मच्छर के विकास के लिए पानी का मुख्य योगदान है इस लिये वह उसी जगह पैदा पलते बढते है जहां पानी जमा हो।
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Very Nice knowledge
जवाब देंहटाएंVery beautiful post and all the information is very accurately described and we needed such information thank you!
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