तनाव का सबसे बड़ा कारण बचाव प्रवृति है जब मन स्थितियों को स्वीकार करने को तैयार नहीं होता तो मन में हमेशा असुरक्षा का भय बैठा रहता है हर स्थिति उसे
डरावनी लगती है। मन निरमुल आशंकाऔ से घिरा रहता है। इंसान खुद के प्रति अरूचिकर हो जाता है और वह किसी भी स्थिति को तनाव की वजह बना लेता है। ऐसा नहीं है कि ज्यादा बुरी स्थितियां ही तनाव का कारण बनती है। सामान्य स्थितियां भी तनाव का कारण बन सकती है और इंसान बुरी से बुरी स्थितियां को भी स्वीकार कर ले तो, तनाव से बच सकता है। जब मन में स्वीकार भाव आता है, तो मन स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाता है और तनाव नहीं होता है। इसलिए स्थितियों से जितना भागने की कोशिश करेंगे उतना ही वह दिमाग पर हावी होगा और तनाव बढ़ेगा स्थितियों को जितना सामना करेंगे और स्थितियों का सामना करना ही समझदारी है तनाव का सबसे बढ़ा कारण भी स्वयं तनाव ही होता है जब बार बार इंसान के मन में यह बिठा दिया जाता है कि तनाव नहीं करना चाहिए। तनाव बुरी चीज है तो जब थोडा सा भी तनाव उसे होता है, तो वह उससे परेशान होने लगता है और जो उसे तनाव हो गया उसी बात को लेकर और अधिक तनाव में आ जाता है। तनाव को स्वीकार कर लो तो वह भी जल्दी चला जाता है जिन्दगी के इस भाग दौड़ में ऐसी स्थिति तो नहीं ला सकते जहां तनाव बिलकुल भी ना हो और बिना तनाव के इन्सान जिन्दगी में कुछ कर भी नहीं पायेगा इस लिये इस स्थिति को भी स्वीकार कर ले तो ज्यादा बेहतर है। हम इस बात की ज्यादा तैयारी करेंगे कि बिल्कुल तनाव होना ही नही चाहिए तो शायद हमें सफलता कभी नहीं मिलेगी ही नहीं लेकिन यदि हम इस बात को स्वीकार कर ले कि तनाव भी अन्य प्रवृतियों की तरह ही जीवन का एक हिस्सा है, तो हम अपने तनाव की वजह से और अधिक तनाव में नहीं आयेगें। और तनाव सहज रूप से दूर हो जायेगा। तनाव हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है तनाव से उतना डरने की आवश्यकता नहीं है। यदि हमारा कुछ बिगड़ता है तो तनाव आने के बाद उसका डर उसकी घबराहट। मन जब यह सोच सोच कर परेशान हो जाता है कि मै इतना प्रयास करता हूं कि तनाव न आए फिर भी तनाव आ जाता है यहाँ तो मैं हार गया हूं। मैं बडा कमजोर हूँ। अपनी इस प्रवृत्ति पर विजय प्राप्त नहीं कर पा रहा हूँ। इसमें मेरा बुरा हो सकता है इस प्रकार की आशंकाए और डर समान्य तनाव को गंभीर तनाव में बदल देते हैं सहज घटने वाली प्रवृत्तिया भी जिन्दगी में गाठे बनने लग जाती है। जैसे तरल पदार्थ ठोस बन जाता है तो उसके बहने की प्रवृत्ति समाप्त हो जाती है। उसी प्रकार जीवन की सामान्य प्रवृत्तियों को हम स्वीकार नहीं करते हैं। ये हमारे जीवन से बहकर तिरोहित नहीं हो पाती और हमारे लिए असहज हो जाती है। कइ लोग कहते हैं कि हमें नीद नहीं आती है बहुत प्रयास करने के बाद भी नीद नहीं आती है। नीद के लिए प्रयास करना ही बुनियादी रूप से गलत है नीद नहीं आनी की वजह सिर्फ एक ही होती है उसके लिए प्रयास कर लिया। प्रयास ही नीद को गायब कर देता है। प्रयास तो जागने के लिए किया जाता है या किया जा सकता है और जितना जागने का प्रयास करेंगे, नीद अपने आप आ जायेगी यदि कोई दिन भर कर्मशील रहता है व्यवस्त रहता है हर स्थिति को स्वीकार करते हुए आनंदित रहता है शारीरिक मेहनत करता है व अच्छे विचारों से प्रभावित पूर्ण रहता है तो ऐसे इंसान को क़भी प्रयास नहीं करना पड़ता है। इस लिए नीद के लिए कभी प्रयास करने की जरूरत नहीं है या नहीं करना पड़ता है प्रयास करना है तो जीवन को संतुलित बनाने के लिए करे अप्रिय क्षणों या स्थितियों के साथ इस प्रकार जीने का तरीका होना चाहिए कि उसका दुष्प्रभाव हमारे जीवन पर ना पड़े इस लिये जीवन में हंसी-मजाक, खेल, मनोरंजन, कला, साहित्य, संगीत, उत्सव, मित्र आदि सबका. भी बडा महत्वपूर्ण स्थान है जीवन में यदि निरस्ता है तो उसमें सृजनात्मक नहीं आ पायेगी। खाली पन भी जिन्दगी के लिए अभिशाप है इस लिये कुछ न कुछ कर्म जीवन में अवश्य होना चाहिए और कर्म भी ऐसा रुचिकर और श्रीजनशील हो जिसमें मन को शांति या सन्तुष्टी मिलती हो। कर्म करेंगे तो थोडी जिम्मेदारियां तो बढ़ेगी पर जिम्मेदारियां लेना जिन्दगी का अनिवार्य हिस्सा है जिम्मेदारियों से बचने के लिए बचने के चक्कर में कर्म शुन्य हो जायेगे तो फिर हाथ में तनाव और अनिद्रा ही लगने वाले हैं। सबसे बड़ा सच तो यह है कि व्यस्तता ही जिन्दगी को शुखी रखने की बेहतरीन दवाई है। जब इन्सान खाली होता है तो उसका मन हर अप्रिय स्थिति को पहाड़ बना देता है लेकिन जब वह काम में व्यस्त हो जाता है तो व्यस्तता के समय उस अप्रिय स्थिति को पूरी तरह से भुल ही जाता है। यहां तक कि व्यक्ति अपनी शारीरिक बिमारीयो को और किसी के प्रति क्रोध भरा हुआ हो तो वह भी व्यस्तता के कारण व्यस्तता के समय भुल जाता है इस लिये अपने को व्यस्त रखना मस्त रहना एक बेहतरीन उपाय है हमारे तनाव में रहने का सबसे बड़ा कारण है काम से बचने की प्रवृति काम करना हमे बोझ लगता है या हम अपने आपको काम करने योग्य नहीं समझते तो हमें उसका बड़ा नुकसान भुगतना पड़ता है तनाव से बचने के लिए जिन्दगी में कर्म करना छोड देने से कोई फायदा नहीं होने वाला है यह सोच ही गलत है कि काम की परेशानियों से तनाव होता है काम के परेशानियों को मन जब स्वीकार नहीं करता है तो तनाव की स्थिति बनती है काम से बचने का प्रयास करेंगे तो तनाव कम नहीं होगा बल्कि और बढेगा काम जिवन का अहम हिस्सा है। उसे आप अपने जीवन में से अलग करके कभी सुखी नहीं हो सकते हैं। जीवन से भागो मत बल्कि उसका सम्मान करो। गृहिणी महिलाओं के साथ भी यह समस्या विशेष रूप से रहती है। उन्हें मिलने वाला खाली समय उनके तनाव का सबसे बड़ा कारण बन जाता है यही नहीं पर्याप्त श्रम न मिलने पर शरीर भी रोगी बन जाता है दरसल मन का काम सोचने का है उसे आप सोचने से नहीं रोक सकते हैं। जब वह खाली होगा तो भी कुछ तो सोचेगा ही और वह वहीं सोचेंगा जैसा उसे माहौल मिलेगा। बार बार केवल यह सोचने से काम नहीं बन पायेगा कि अब मै तनाव नहीं करूंगा अब मैं नीद लाने की पूरी कोशिश करूंगा बल्कि जीवन की गुणवत्ता गतिविधियों को बेहतर तरीके से प्रबन्धित करने से ही जीवन खुबसूरत बन सकता है। जीवन में हंसी मजाक व मनोरंजन हो और यह कर्म प्रधान हो काम में व्यस्तता हो तो ऐसे इंसान को नीद कब कहा और कैसे आती है इस बारे में कभी सोचना नहीं पड़ता है। जिस कार्य में व्यक्ति की कोई खास भुमिका नहीं हो, उस कार्य को वह करता तो है पर एक बेजान मशीन की तरह। उसमें उसकी कोई रुचि न हो तब भी स्थिति खालीपन जैसी ही बनी रहती है ऐसी स्थिति केवल सिर्फ बचाव खोजने के चक्कर में आती है जहां तक जीवन में दुखों का सवाल है यह भी जीवन की एक सच्चाई है कि दुख आए बिना सुखो की अनुभूति नहीं हो सकती है जब तक दुखमय स्थिति का अनुभव नहीं हो तब तक यह पता नहीं चल सकता है कि सुख क्या है इसलिए दुखमय स्थिति को असहज रुप से लेने की आवश्यकता नहीं है इन सब चीजों को हम जीवन से अलग नहीं कर सकते। इनके प्रति सिर्फ हम अपना रवैया बदल सकते हैं। मनुष्य जीवन की जितनी भी नकारात्मक वृत्तिया है तनाव, क्रोध, लालच, अहंकार, दुख आदि सभी की एक ही बात है कि हम इनके लिए कितना भी निश्चय करे कि अब यह बिल्कुल नहीं करूंगा फिर भी हम इससे बच नहीं पायेंगे। हमेशा हम हारते रहेगे। लेकिन यदि हम इन्हें हम स्वीकार करे इन्हें समझे इनके प्रति अपना रवैया सकारात्मक रखे तो हमें ये असहज नहीं कर पायेंगे। जीवन में तनाव आने की सबसे बड़ी वजह है कि जीवन का असंतुलित हो जाना जीवन की कयी महत्वपूर्ण बातों का भुल जाना। वास्तव में जीवन कयी रसो से बना है जब सब रसो का सन्तुलन रहता है तो जीवन में आनन्द रहता है और जब सन्तुलन बिगड़ जाता है तो आनन्द के वजाय दुख या तनाव हासिल होता है। व्यक्ति जितना पैसे के पीछे भागता है यदि उतना ही इन्सानियत के पिछे भागे उतना ही लोगों के प्रति प्रेम की भावना रखे अपने परिवार के प्रति अगाध प्रेम रखे ईमानदारी का जीवन जीने की सोच रखे स्वास्थ्य के प्रति सहज रहे जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक रहे हमेशा दूसरों के खुशियो के लिए खुसिया देने की सोच रखे तो आप पाएंगे जीवन फुलो के समान खुबसुरत है केवल पैसे से जीवन में खुसिया आ जायेगी यह बहुत अधूरी बात है अगर ऐसा होता तो दुनिया में पैसे वाले को तनाव नहीं होता सच तो यह है कि ज्यादा पैसे वाले को ज्यादा नीद की गोलियां खानी पड़ती है खुसिया बाटो तो खुसिया लौटकर आती है और आएगी जीवन में सबसे ज्यादा एकत्र करना चाहिए तो वह है प्रेम जिसका हर एहसास बड़ी बड़ी दौलत से ज्यादा सुन्दर होता है और प्रेम को जितना ज्यादा लुटाओगे वह उतना ही अधिक आप के पास एकत्रित होगा होता जायेगा। दरअसल तनाव होता है किसी भी स्थिति के प्रति अस्वीकार्य भाव ओर प्रेम उसके विपरीत स्थिति है। उसमें स्वीकार भाव होता है इसलिए प्रेम में जीवन के सारे समधान निहित है
डरावनी लगती है। मन निरमुल आशंकाऔ से घिरा रहता है। इंसान खुद के प्रति अरूचिकर हो जाता है और वह किसी भी स्थिति को तनाव की वजह बना लेता है। ऐसा नहीं है कि ज्यादा बुरी स्थितियां ही तनाव का कारण बनती है। सामान्य स्थितियां भी तनाव का कारण बन सकती है और इंसान बुरी से बुरी स्थितियां को भी स्वीकार कर ले तो, तनाव से बच सकता है। जब मन में स्वीकार भाव आता है, तो मन स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाता है और तनाव नहीं होता है। इसलिए स्थितियों से जितना भागने की कोशिश करेंगे उतना ही वह दिमाग पर हावी होगा और तनाव बढ़ेगा स्थितियों को जितना सामना करेंगे और स्थितियों का सामना करना ही समझदारी है तनाव का सबसे बढ़ा कारण भी स्वयं तनाव ही होता है जब बार बार इंसान के मन में यह बिठा दिया जाता है कि तनाव नहीं करना चाहिए। तनाव बुरी चीज है तो जब थोडा सा भी तनाव उसे होता है, तो वह उससे परेशान होने लगता है और जो उसे तनाव हो गया उसी बात को लेकर और अधिक तनाव में आ जाता है। तनाव को स्वीकार कर लो तो वह भी जल्दी चला जाता है जिन्दगी के इस भाग दौड़ में ऐसी स्थिति तो नहीं ला सकते जहां तनाव बिलकुल भी ना हो और बिना तनाव के इन्सान जिन्दगी में कुछ कर भी नहीं पायेगा इस लिये इस स्थिति को भी स्वीकार कर ले तो ज्यादा बेहतर है। हम इस बात की ज्यादा तैयारी करेंगे कि बिल्कुल तनाव होना ही नही चाहिए तो शायद हमें सफलता कभी नहीं मिलेगी ही नहीं लेकिन यदि हम इस बात को स्वीकार कर ले कि तनाव भी अन्य प्रवृतियों की तरह ही जीवन का एक हिस्सा है, तो हम अपने तनाव की वजह से और अधिक तनाव में नहीं आयेगें। और तनाव सहज रूप से दूर हो जायेगा। तनाव हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है तनाव से उतना डरने की आवश्यकता नहीं है। यदि हमारा कुछ बिगड़ता है तो तनाव आने के बाद उसका डर उसकी घबराहट। मन जब यह सोच सोच कर परेशान हो जाता है कि मै इतना प्रयास करता हूं कि तनाव न आए फिर भी तनाव आ जाता है यहाँ तो मैं हार गया हूं। मैं बडा कमजोर हूँ। अपनी इस प्रवृत्ति पर विजय प्राप्त नहीं कर पा रहा हूँ। इसमें मेरा बुरा हो सकता है इस प्रकार की आशंकाए और डर समान्य तनाव को गंभीर तनाव में बदल देते हैं सहज घटने वाली प्रवृत्तिया भी जिन्दगी में गाठे बनने लग जाती है। जैसे तरल पदार्थ ठोस बन जाता है तो उसके बहने की प्रवृत्ति समाप्त हो जाती है। उसी प्रकार जीवन की सामान्य प्रवृत्तियों को हम स्वीकार नहीं करते हैं। ये हमारे जीवन से बहकर तिरोहित नहीं हो पाती और हमारे लिए असहज हो जाती है। कइ लोग कहते हैं कि हमें नीद नहीं आती है बहुत प्रयास करने के बाद भी नीद नहीं आती है। नीद के लिए प्रयास करना ही बुनियादी रूप से गलत है नीद नहीं आनी की वजह सिर्फ एक ही होती है उसके लिए प्रयास कर लिया। प्रयास ही नीद को गायब कर देता है। प्रयास तो जागने के लिए किया जाता है या किया जा सकता है और जितना जागने का प्रयास करेंगे, नीद अपने आप आ जायेगी यदि कोई दिन भर कर्मशील रहता है व्यवस्त रहता है हर स्थिति को स्वीकार करते हुए आनंदित रहता है शारीरिक मेहनत करता है व अच्छे विचारों से प्रभावित पूर्ण रहता है तो ऐसे इंसान को क़भी प्रयास नहीं करना पड़ता है। इस लिए नीद के लिए कभी प्रयास करने की जरूरत नहीं है या नहीं करना पड़ता है प्रयास करना है तो जीवन को संतुलित बनाने के लिए करे अप्रिय क्षणों या स्थितियों के साथ इस प्रकार जीने का तरीका होना चाहिए कि उसका दुष्प्रभाव हमारे जीवन पर ना पड़े इस लिये जीवन में हंसी-मजाक, खेल, मनोरंजन, कला, साहित्य, संगीत, उत्सव, मित्र आदि सबका. भी बडा महत्वपूर्ण स्थान है जीवन में यदि निरस्ता है तो उसमें सृजनात्मक नहीं आ पायेगी। खाली पन भी जिन्दगी के लिए अभिशाप है इस लिये कुछ न कुछ कर्म जीवन में अवश्य होना चाहिए और कर्म भी ऐसा रुचिकर और श्रीजनशील हो जिसमें मन को शांति या सन्तुष्टी मिलती हो। कर्म करेंगे तो थोडी जिम्मेदारियां तो बढ़ेगी पर जिम्मेदारियां लेना जिन्दगी का अनिवार्य हिस्सा है जिम्मेदारियों से बचने के लिए बचने के चक्कर में कर्म शुन्य हो जायेगे तो फिर हाथ में तनाव और अनिद्रा ही लगने वाले हैं। सबसे बड़ा सच तो यह है कि व्यस्तता ही जिन्दगी को शुखी रखने की बेहतरीन दवाई है। जब इन्सान खाली होता है तो उसका मन हर अप्रिय स्थिति को पहाड़ बना देता है लेकिन जब वह काम में व्यस्त हो जाता है तो व्यस्तता के समय उस अप्रिय स्थिति को पूरी तरह से भुल ही जाता है। यहां तक कि व्यक्ति अपनी शारीरिक बिमारीयो को और किसी के प्रति क्रोध भरा हुआ हो तो वह भी व्यस्तता के कारण व्यस्तता के समय भुल जाता है इस लिये अपने को व्यस्त रखना मस्त रहना एक बेहतरीन उपाय है हमारे तनाव में रहने का सबसे बड़ा कारण है काम से बचने की प्रवृति काम करना हमे बोझ लगता है या हम अपने आपको काम करने योग्य नहीं समझते तो हमें उसका बड़ा नुकसान भुगतना पड़ता है तनाव से बचने के लिए जिन्दगी में कर्म करना छोड देने से कोई फायदा नहीं होने वाला है यह सोच ही गलत है कि काम की परेशानियों से तनाव होता है काम के परेशानियों को मन जब स्वीकार नहीं करता है तो तनाव की स्थिति बनती है काम से बचने का प्रयास करेंगे तो तनाव कम नहीं होगा बल्कि और बढेगा काम जिवन का अहम हिस्सा है। उसे आप अपने जीवन में से अलग करके कभी सुखी नहीं हो सकते हैं। जीवन से भागो मत बल्कि उसका सम्मान करो। गृहिणी महिलाओं के साथ भी यह समस्या विशेष रूप से रहती है। उन्हें मिलने वाला खाली समय उनके तनाव का सबसे बड़ा कारण बन जाता है यही नहीं पर्याप्त श्रम न मिलने पर शरीर भी रोगी बन जाता है दरसल मन का काम सोचने का है उसे आप सोचने से नहीं रोक सकते हैं। जब वह खाली होगा तो भी कुछ तो सोचेगा ही और वह वहीं सोचेंगा जैसा उसे माहौल मिलेगा। बार बार केवल यह सोचने से काम नहीं बन पायेगा कि अब मै तनाव नहीं करूंगा अब मैं नीद लाने की पूरी कोशिश करूंगा बल्कि जीवन की गुणवत्ता गतिविधियों को बेहतर तरीके से प्रबन्धित करने से ही जीवन खुबसूरत बन सकता है। जीवन में हंसी मजाक व मनोरंजन हो और यह कर्म प्रधान हो काम में व्यस्तता हो तो ऐसे इंसान को नीद कब कहा और कैसे आती है इस बारे में कभी सोचना नहीं पड़ता है। जिस कार्य में व्यक्ति की कोई खास भुमिका नहीं हो, उस कार्य को वह करता तो है पर एक बेजान मशीन की तरह। उसमें उसकी कोई रुचि न हो तब भी स्थिति खालीपन जैसी ही बनी रहती है ऐसी स्थिति केवल सिर्फ बचाव खोजने के चक्कर में आती है जहां तक जीवन में दुखों का सवाल है यह भी जीवन की एक सच्चाई है कि दुख आए बिना सुखो की अनुभूति नहीं हो सकती है जब तक दुखमय स्थिति का अनुभव नहीं हो तब तक यह पता नहीं चल सकता है कि सुख क्या है इसलिए दुखमय स्थिति को असहज रुप से लेने की आवश्यकता नहीं है इन सब चीजों को हम जीवन से अलग नहीं कर सकते। इनके प्रति सिर्फ हम अपना रवैया बदल सकते हैं। मनुष्य जीवन की जितनी भी नकारात्मक वृत्तिया है तनाव, क्रोध, लालच, अहंकार, दुख आदि सभी की एक ही बात है कि हम इनके लिए कितना भी निश्चय करे कि अब यह बिल्कुल नहीं करूंगा फिर भी हम इससे बच नहीं पायेंगे। हमेशा हम हारते रहेगे। लेकिन यदि हम इन्हें हम स्वीकार करे इन्हें समझे इनके प्रति अपना रवैया सकारात्मक रखे तो हमें ये असहज नहीं कर पायेंगे। जीवन में तनाव आने की सबसे बड़ी वजह है कि जीवन का असंतुलित हो जाना जीवन की कयी महत्वपूर्ण बातों का भुल जाना। वास्तव में जीवन कयी रसो से बना है जब सब रसो का सन्तुलन रहता है तो जीवन में आनन्द रहता है और जब सन्तुलन बिगड़ जाता है तो आनन्द के वजाय दुख या तनाव हासिल होता है। व्यक्ति जितना पैसे के पीछे भागता है यदि उतना ही इन्सानियत के पिछे भागे उतना ही लोगों के प्रति प्रेम की भावना रखे अपने परिवार के प्रति अगाध प्रेम रखे ईमानदारी का जीवन जीने की सोच रखे स्वास्थ्य के प्रति सहज रहे जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक रहे हमेशा दूसरों के खुशियो के लिए खुसिया देने की सोच रखे तो आप पाएंगे जीवन फुलो के समान खुबसुरत है केवल पैसे से जीवन में खुसिया आ जायेगी यह बहुत अधूरी बात है अगर ऐसा होता तो दुनिया में पैसे वाले को तनाव नहीं होता सच तो यह है कि ज्यादा पैसे वाले को ज्यादा नीद की गोलियां खानी पड़ती है खुसिया बाटो तो खुसिया लौटकर आती है और आएगी जीवन में सबसे ज्यादा एकत्र करना चाहिए तो वह है प्रेम जिसका हर एहसास बड़ी बड़ी दौलत से ज्यादा सुन्दर होता है और प्रेम को जितना ज्यादा लुटाओगे वह उतना ही अधिक आप के पास एकत्रित होगा होता जायेगा। दरअसल तनाव होता है किसी भी स्थिति के प्रति अस्वीकार्य भाव ओर प्रेम उसके विपरीत स्थिति है। उसमें स्वीकार भाव होता है इसलिए प्रेम में जीवन के सारे समधान निहित है
SO GOOD KNOLEGMENT
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