मंगलवार

BHAGWAT GEETA

 *🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।३१।।*

*यया धर्ममधर्मं च कार्यं चाकार्यमेव च ।अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी ॥*

*यया–* जिसके द्वारा; *धर्मम्–* धर्म को; *अधर्मम्–* अधर्म को; *च–* तथा; *कार्यम्–* करणीय; *च–* भी; *अकार्यम्–* अकरणीय को; *एव–* निश्चय ही; *च–* भी; *अथवा-वत् –* अधूरे ढंग से; *प्रजानाति–* जानती है; *बुद्धिः–* बुद्धि; *सा–* वह; *पार्थ–* हे पृथापुत्र; *राजसी–* रजोगुणी |

*हे पृथापुत्र! जो बुद्धि धर्म तथा अधर्म,करणीय तथा अकरणीय कर्म में भेद नहीं कर पाती,वह राजसी है ।*
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।३०।।*

*प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये । बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी ॥*

*प्रवृत्तिम्–* कर्म को; *च–* भी; *निवृत्तिम्–* अकर्म को; *च–* तथा; *कार्य–* करणीय; *अकार्य–* तथा अकरणीय में; *भय–* भय; *अभये–* तथा निडरता में; *बन्धम्–* बन्धन; *मोक्षम्–* मोक्ष; *च–* तथा; *या–* जो; *वेत्ति–* जानता है; *बुद्धिः–* बुद्धि; *सा–* वह; *पार्थ–* हे पृथापुत्र; *सात्त्विकी–* सतोगुणी |

*हे पृथापुत्र! वह बुद्धि सतोगुणी है, जिसके द्वारा मनुष्य यह जानता है कि क्या करणीय है और क्या नहीं है, किसे डरना चाहिए और किसे नहीं, क्या बाँधने वाला है और क्या मुक्ति देने वाला है |*

*तात्पर्य :-* शास्त्रों के निर्देशानुसार कर्म करने को या उन कर्मों को करना जिन्हें किया जाना चाहिए, प्रवृत्ति कहते हैं | जिन कार्यों का इस तरह निर्देश नहीं होता वे नहीं किये जाने चाहिए | जो व्यक्ति शास्त्रों के निर्देशों को नहीं जानता, वह कर्मों तथा उनकी प्रतिक्रिया से बँध जाता है | जो बुद्धि अच्छे बुरे का भेद बताती है, वह सात्त्विकी है |
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।२९।।*

*बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं शृणु ।प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनंजय ॥*

*बुद्धेः–* बुद्धि का; *भेदम्–* अन्तर; *धृतेः–* धैर्य का; *च–* भी; *एव–* निश्चय ही; *गुणतः–* गुणों के द्वारा; *त्रि-विधम्–* तीन प्रकार के; *शृणु–* सुनो; *प्रोच्यमानम्–* जैसा मेरे द्वारा कहा गया; *अशेषेण–* विस्तार से; *पृथक्त्वेन–* भिन्न प्रकार से; *धनञ्जय–* हे सम्पत्ति के विजेता |

*हे धनञ्जय! अब मैं प्रकृति के तीनों गुणों के अनुसार तुम्हें विभिन्न प्रकार की बुद्धि तथा धृति के विषय में विस्तार से बताऊँगा | तुम इसे सुनो |*

*तात्पर्य :-* ज्ञान, ज्ञेय तथा ज्ञाता की व्याख्या प्रकृति के गुणों के अनुसार तीन-तीन पृथक् विभागों में करने के बाद अब भगवान् कर्ता की बुद्धि तथा उसके संकल्प (धैर्य) के विषय में उसी प्रकार से बता रहे हैं |
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।२८।।*

*अयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठो नैष्कृतिकोऽलसः । विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते ॥*

*अयुक्तः–* शास्त्रों के आदेशों को न मानने वाला; *प्राकृतः–* भौतिकवादी; *स्तब्धः–* हठी; *शठः–* कपटी; *नैष्कृतिकः–* अन्यों का अपमान करने में पटु; *अलसः–* आलसी; *विषादी–* खिन्न; *दीर्घ-सूत्री–* ऊँघ-ऊँघ कर काम करने वाला, देर लगाने वाला; *च–* भी; *कर्ता–* कर्ता; *तामसः–* तमोगुणी; *उच्यते–* कहलाता है |

*जो कर्ता सदा शास्त्रों के आदेशों के विरुद्ध कार्य करता रहता है, जो भौतिकवादी, हठी, कपटी तथा अन्यों का अपमान करने में पटु है तथा जो आलसी, सदैव खिन्न तथा काम करने में दीर्घसूत्री है, वह तमोगुणी कहलाता है |*

*तात्पर्य :-* शास्त्रीय आदेशों से हमें पता चलता है कि हमें कौन सा काम करना चाहिए और कौन सा नहीं करना चाहिए | जो लोग शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करके अकरणीय कार्य करते हैं, प्रायः भौतिकवादी होते हैं | वे प्रकृति के गुणों के अनुसार कार्य करते हैं, शास्त्रों के आदेशों के अनुसार नहीं | ऐसे कर्ता भद्र नहीं होते और सामान्यतया सदैव कपटी (धूर्त) तथा अन्यों का अपमान करने वाले होते हैं | वे अत्यन्त आलसी होते हैं, काम होते हुए भी उसे ठीक से नहीं करते और बाद में करने के लिए उसे एक तरफ रख देते हैं, अतएव वे खिन्न रहते हैं | जो काम एक घंटे में हो सकता है, उसे वे वर्षों तक घसीटते हैं-वे दीर्घसूत्री होते हैं | ऐसे कर्ता तमोगुणी होते हैं |
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।२७।।*

*रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः ।हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः ॥*

*रागी–* अत्यधिक आसक्त; *कर्म-फल–* कर्म के फल की; *प्रेप्सुः–* इच्छा करते हुए; *लुब्धः–* लालची; *हिंसा-आत्मकः–* सदैव ईर्ष्यालु; *अशुचिः–* अपवित्र; *हर्ष-शोक-अन्वितः–* हर्ष तथा शोक से युक्त; *कर्ता–* ऐसा कर्ता; *राजसः–* रजोगुणी; *परिकीर्तितः–* घोषित किया जाता है |

*जो कर्ता कर्म तथा कर्म-फल के प्रति आसक्त होकर फलों का भोग करना चाहता है तथा जो लोभी, सदैव ईर्ष्यालु, अपवित्र और सुख-दुख से विचलित होने वाला है, वह राजसी कहा जाता है |*

*तात्पर्य :-* मनुष्य सदैव किसी कार्य के प्रति या फल के प्रति इसलिए अत्यधिक आसक्त रहता है, क्योंकि वह भौतिक पदार्थों, घर-बार, पत्नी तथा पुत्र के प्रति अत्यधिक अनुरक्त होता है | ऐसा व्यक्ति जीवन में ऊपर उठने की आकांक्षा नहीं रखता | वह इस संसार को यथासम्भव आरामदेह बनाने में ही व्यस्त रहता है | सामान्यतः वह अत्यन्त लोभी होता है और सोचता है कि उसके द्वारा प्राप्त की गई प्रत्येक वस्तु स्थायी है और कभी नष्ट नहीं होगी | ऐसा व्यक्ति अन्यों से ईर्ष्या करता है और इन्द्रियतृप्ति के लिए कोई भी अनुचित कार्य कर सकता है | अतएव ऐसा व्यक्ति अपवित्र होता है और वह इसकी चिन्ता नहीं करता कि उसकी कमाई शुद्ध है या अशुद्ध | यदि उसका कार्य सफल हो जाता है तो वह अत्यधिक प्रसन्न और असफल होने पर अत्यधिक दुखी होता है| रजोगुणी कर्ता ऐसा ही होता है |
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।२६।।*

*मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः ।सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥*

*मुक्त-सङगः–* सारे भौतिक संसर्ग से मुक्त; *अनहम्-वादी–* मिथ्या अहंकार से रहित; *धृति–* संकल्प; *उत्साह–* तथा उत्साह सहित; *समन्वितः–* योग्य; *सिद्धि–* सिद्धि; *असिद्धयोः–* तथा विफलता में; *निर्विकारः–* बिना परिवर्तन के; *कर्ता–* कर्ता; *सात्त्विकः–* सतोगुणी; *उच्यते –* कहा जाता है |

*जो व्यक्ति भौतिक गुणों के संसर्ग के बिना अहंकाररहित, संकल्प तथा उत्साहपूर्वक अपना कर्म करता है और सफलता अथवा असफलता में अविचलित रहता है, वह सात्त्विक कर्ता कहलाता है |*

*तात्पर्य :-* कृष्णभावनामय व्यक्ति सदैव प्रकृति के गुणों से अतीत होता है | उसे अपना को सौंपे गये कर्म के परिणाम की कोई आकांक्षा नही रहती, क्योंकि वह मिथ्या अहंकार तथा घमंड से परे होता है | फिर भी कार्य के पूर्ण होने तक वह सदैव उत्साह से पूर्ण रहता है | उसे होने वाले कष्टों की कोई चिन्ता नहीं होती, वह सदैव उत्साहपूर्ण रहता है | वह सफलता या विफलता की परवाह नहीं करता, वह सुख-दुख में समभाव रहता है | ऐसा कर्ता सात्त्विक है |
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।२५।।*

*अनुबन्धं क्षयं हिंसामनवेक्ष्य च पौरुषम् । मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते ॥*

*अनुबन्धम्–* भावी बन्धन का; *क्षयम्–* विनाश; *हिंसाम्–* तथा अन्यों को कष्ट; *अनपेक्ष्य–* परिणाम पर विचार किये बिना; *च–* भी; *पौरुषम्–* सामर्थ्य को; *मोहात्–* मोह से; *आरभ्यते–* प्रारम्भ किया जाता है; *कर्म–* कर्म; *यत्–* जो; *तत्–* वह; *तामसम्–* तामसी; *उच्यते–* कहा जाता है |

*जो कर्म मोहवश शास्त्रीय आदेशों की अवहेलना करके तथा भावी बन्धन की परवाह किये बिना या हिंसा अथवा अन्यों को दुख पहुँचाने के लिए किया जाता है, वह तामसी कहलाता है |*

*तात्पर्य :-* मनुष्य को अपने कर्मों का लेखा राज्य को अथवा परमेश्र्वरके दूतों को, जिन्हें यमदूत कहते हैं, देना होता है | उत्तरदायित्वहीन कर्मविनाशकारी है, क्योंकि इससे शास्त्रीय आदेशों का विनाश होता है | यह प्रायः हिंसा परआधारित होता है और अन्य जीवों के लिए दुखदायी होता है | उत्तरदायित्व से हीन ऐसा कर्म अपने निजी अनुभव के आधार पर किया जाता है | यह मोह कहलाता है | ऐसा समस्त मोहग्रस्त कर्म तमोगुण के फलस्वरूप होता है |
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।२४।।*

*यत्तु कामेप्सुना कर्म साहंकारेण वा पुनः । क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम् ॥*

*यत्–* जो; *तु–* लेकिन; *काम-ईप्सुना–* फल की इच्छा रखने वाले के द्वारा; *कर्म–* कर्म; *स-अहङ्कारेण–* अहंकार सहित; *वा–* अथवा; *पुनः–* फिर; *क्रियते–* किया जाता है; *बहुल आयासम्–* कठिन परिश्रम से; *तत्–* वह; *राजसम्–* राजसी; *उदाहृतम्–* कहा जाता है |

*लेकिन जो कार्य अपनी इच्छा पूर्ति के निमित्त प्रयासपूर्वक एवं मिथ्याअहंकार के भाव से किया जाता है, वह रजोगुणी कहा जाता है |

kolkata Kolkata, West Bengal, India

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

Popular Posts

Categories

मनुष्य का सबसे बड़ा धन उसका स्वस्थ शरीर हैं इससे बड़ा जगत में कोई धन नहीं है यद्यपि बहुत लोग धन के पीछे अपना यथार्थ और भविष्य सब कुछ भुल जाते हैं। उनको बस सब कुछ धन ही एक मात्र लक्ष्य होता है। अन्तहीन समय आने पर उन्हें जब तक ज्ञात होता है तब तक देर हो चुकी होती है। क्या मैंने थोड़ा सा समय अपने लिए जिया काश समय अपने लिए कुछ निकाल पाता तो आज इस अवस्था में मै नहीं होता जो परिवार का मात्र एक प्रमुख सहारा है वह आज दुसरे की आश लगाये बैठा है। कहने का तात्पर्य यह है कि वह समय हम पर निर्भर करता है थोडा सा ध्यान चिन्तन करने के लिए अपने लिए उपयुक्त समय निकाल कर इस शारीरिक मापदंड को ठीक किया जाय। और शरीर को नुकसान से बचाया जाए और स्वास्थ्य रखा जाय और जीवन जीने की कला को समझा जाय।   vinaysinghsubansi.blogspot.com पर इसी पर कुछ हेल्थ टिप्स दिए गए हैं जो शायद आपके लिए वरदान साबित हो - धन्यवाद